Monday, October 31, 2011

अमीर खुसरो की रचना

मित्रों, मेरे एक प्रिय फेसबुक साथी विश्वजीत रोहिल ने अमीर खुसरो की यह रचना प्रस्तुत की है। मैं उनका आभारी हूं। परमहंस योगानंद जी ने खुसरो की रचनाओं की आध्यात्मिक व्याख्या की है। अमीर खुसरो गहरे आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे ईश्वर में ही सराबोर रहते थे। आइए उनकी रचना पढ़ें---






रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।


खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।


चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।


खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।


खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।


उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।


श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।


पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।।


नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।।


साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।


रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।।


अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।


आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।


अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।


खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।


संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।।


खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।

Saturday, October 29, 2011

फलों के विभिन्न रंग और कब्ज

विनय बिहारी सिंह



घर से दफ्तर आते वक्त रास्ते में एक फल की दुकान पड़ती है जिसमें विदेशी फल बिकते हैं। वहां से गुजरते हुए तरह-तरह के सेब, नाशपाती, अंगूर, आलूबुखारा, ईरानी अंगूर, आस्ट्रेलिया का किवी देख कर अच्छा लगता है। कई बार सोच कर निकलता हूं कि आज कोई न कोई फल अवश्य लूंगा। लेकिन इतनी गहन व्यस्तता होती है कि कुछ भी खरीदने या किसी परिचित को फोन करने की सुधि नहीं रहती। आज एक खूबसूरत नाशपाती देखी। उस पर लाल आभा आ गई थी। यह सब लिखने का क्या अर्थ है? दरअसल आज एक जगह पढ़ा कि फल और सब्जियों का बहुतायत में सेवन से हमारा पेट स्वस्थ रहता है और मन शांत। आज पेट के रोगों पर काफी कुछ पढ़ने को मिला। सोचा आपको भी बताऊं क्या पढ़ा। लेकिन जब फलों की चर्चा चल पड़ी है तो सेब के स्वाद की भी चर्चा हो। मैंने जो अनुभव किया है, पहले उसे बताएं। सेब कई रंगों वाले होते हैं- लाल, गुलाबी, पीले, हरे, हरे-लाल मिक्स, पीले- हरे मिक्स और सफेद। इनके स्वाद में थोड़ा सा फर्क होता है लेकिन सेब का जो टिपिकल स्वाद होता है, वह तो सबमें ही रहता है। नाशपाती भी तरह तरह के होते हैं। लेकिन कुछ नाशपाती चबाने में चीमड़ होते हैं और कुछ चबाने में सुखद और स्वादिष्ट। आलूबुखारा आमतौर पर खट्टे ही होते हैं। कुछ लोग उसमें मधु मिला कर खाते हैं। क्योंकि यह कब्ज तोड़ता है। कब्ज के विशेषग्य बताते हैं कि कब्ज तोड़ने वाली सब्जी में लौकी का कोई जवाब नहीं। खासतौर से एकदम ताजा लौकी। लेकिन इसके साथ ईसबगोल की भूसी का सेवन जरूरी है। आयुर्वेद के डाक्टर कहते हैं- मुनक्का भिंगो कर दिन में रख दीजिए और रात को भोजन के पहले एक कप दूध के साथ उसका सेवन कीजिए। सुबह पेट साफ। इसके अलावा त्रिफला को पानी में मिला कर उसमें गाय का घी डाल कर पीने से भी फायदा होता है। इसके अलावा खजूर को एक चम्मच गाय के घी के साथ खाने पर भी कब्ज में काफी फायदा होता है। लेकिन खजूर का फल सूखा न हो। यदि सूखा है तो इसे भिंगो देना चाहिए। कब्ज से परेशान लोगों को सूखे फल नहीं खाने चाहिए। मिठाई और शर्बत से परहेज करना चाहिए।

Friday, October 28, 2011

काला राम का मंदिर

विनय बिहारी सिंह



नासिक के पंचवटी इलाके में घूमते हुए मुझे काला राम का मंदिर दिखा। पहले तो लगा किसी काला राम ने इसे बनवाया होगा। लेकिन मंदिर में गया तो पाया कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता जी की मूर्ति काले पत्थर से बनी है, इसीलिए इस मंदिर को काला राम का मंदिर कहा गया है। भगवान राम की मूर्ति का दर्शन कर नीचे उतरा तो सामने ही एक और मंदिर दिखा- हनुमान जी का। उसी कैंपस में। नजदीक गया तो पाया कि वह हनुमान जी का मंदिर है और हनुमान जी की मूर्ति भी काले पत्थर से ही बनी है। अच्छा लगा। जिस रंग में राम जी उसी रंग में हनुमान जी। मूर्ति सुंदर और जाग्रत लगी। भगवान राम के मंदिर में क्षण भर बैठ कर अच्छा लगा।
तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा किसी प्रसंग में लिखा है-

दीनदयाल विरद संभारी। हरहुं नाथ मम संकट भारी।।

अर्थात- हे राम, आप दीनदयाल हैं। दीनों की रक्षा करने वाले। मेरे ऊपर भारी संकट आया है। कृपया मुझे इस संकट से बचा लीजिए। इस संकट को हर लीजिए।
भगवान के भक्त इसीलिए तो कहते हैं- हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे। हे भगवान राम, आप सारे दुखों, पाप-ताप का हरण करने वाले हैं। अब मैं आपकी शरण में आया हूं। फिर कोई गलती नहीं करूंगा। मेरे दुखों और संतापों का हरण कर लीजिए। आप तो शरणागत की रक्षा करते हैं। मैं आपकी शरण में हूं। रक्षा कीजिए भगवान, रक्षा कीजिए।

Thursday, October 27, 2011

दीपावली

विनय बिहारी सिंह



उम्मीद है आप सबकी दीपावली अच्छी बीती होगी। आप सबके जीवन में सुख और समृद्धि लगातार बढ़ती जाए। मां लक्ष्मी आपके ऊपर सदा कृपालु बनी रहें।
आज आफिस आ रहा था तो एक व्यक्ति की बात मेरे कानों में पड़ी। उसकी पीड़ा थी कि दीपावली प्रकाश का त्यौहार न हो कर अब शोरगुल का त्यौहार बन गया है। पश्चिम बंगाल में दीपावली को कालीपूजा के रूप में मनाते हैं। सार्वजनिक रूप से भी और व्यक्तिगत रूप से भी लोग मां काली की मूर्ति अस्थाई रूप से स्थापित करते हैं और विधिवत पूजा- अर्चना करते हैं। पूजा के समय ढाक बजता है। ढाक कैसा होता है, यह पश्चिम बंगाल के बाहर रहने वाले लोग शायद न समझ पाएं। इसलिए संक्षेप में इसकी चर्चा जरूरी है। एक बहुत बड़े ड्रम (वाद्य यंत्र) जैसा होता है ढाक। बीच में ढोलक जैसा कर्व। लेकिन ढोलक में एक तरफ का हिस्सा कुछ कम गोलाई लिए होता है। ढाक में दोनों तरफ के गोल हिस्से एक जैसे होते हैं। लेकिन चूंकि यह भारी होता है इसलिए इसे एक तरफ से ही बजाया जाता है। दोनों हाथों में दो लकड़ियों को पकड़ कर- ढम ढमा ढम बजाया जाता है। ढाक बजाने वाला एक नियत फीस लेकर दो या तीन दिन तक आपके पंडाल में ढाक बजाता है।
मेरे कैंपस में भी काली पूजा हो रही है। आधी रात के बाद भी ढाक बजता रहा और असंख्य पटाखे बजते रहे। कितना पैसा खर्च हुआ होगा? सोच कर चकित होता हूं। सारा कैंपस धुआं से भर गया था। प्रदूषण की हद टूट गई थी। लेकिन काफी तेज आवाज वाले पटाखे बजाने वालों का मन नहीं भर रहा था। बम जैसी आवाज वाले पटाखे लगातार ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ाते जा रहे थे। हम सब कब इसके प्रति सचेत होंगे, भगवान जाने। सभी तो पढ़े- लिखे हैं। किसे क्या कहें? ऊपर से मां काली की मूर्ति के पास लाउडस्पीकर पर फिल्मी गाने बजाए जा रहे थे। बाद में किसी का ध्यान गया तो वहां मां काली की अराधना वाले गीत बजने लगे। मुझे उस व्यक्ति की पीड़ा का अहसास हुआ जो दीपावली को प्रकाश का नहीं ध्वनि प्रदूषण का पर्व बनता देख कर दुखी था।
यदि यह मां काली की पूजा है तो इसमें शोर का स्थान तो कहीं दिखता नहीं। मां काली की पूजा रात्रि के अंधकार में शांति में होती है। मां काली का रंग प्रतीकात्मक रूप से इसलिए काला दिखाया जाता है क्योंकि वे अंधेरे में प्रकाश स्वरूप हैं। तब फिर काली क्यों हैं? क्योंकि वे भक्तों को सहज नहीं दिखतीं। गहरे ध्यान के बाद प्रकट होती हैं। वे काली हैं यानी काल की स्वामिनी। ऐसी मां काली को असंख्य बार नमन। हे मां काली- सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।।

Tuesday, October 25, 2011

विपश्यना केंद्र

विनय बिहारी सिंह



इगतपुरी में ही ६४ एकड़ में फैला विपासना केंद्र है। हम घूमते हुए वहां भी गए थे। वहीं एक बोर्ड पर लिखा था- सयाजी ऊ बा खिन- ने विपश्यना विद्या भारत भेजी थी। इगतपुरी का विपश्यना केंद्र बहुत ही आकर्षक और भव्य है। वहां एक पर्यटक ने बताया- इसे सत्यनारायण गोयनका जी संचालित करते हैं। यहां का पगोडा (ध्यान केंद्र) भी हम देखना चाहते थे। लेकिन हमें बताया गया कि वहां बाहरी लोगों को नहीं जाने दिया जाता। वहां लोग ध्यान कर रहे हैं। वहां के रिसेप्शन में बैठे व्यक्ति ने हमें पगोडा और विपश्यना संबंधी एक वीडियो दिखाया। इससे एक अंदाजा मिल गया कि यहां होता क्या है। अगले दिन हम गोदावरी नदी के किनारे बने नारोशंकर मंदिर में गए। वहां सुनहरे रंग का ७५० किलो का विशाल घंटा देख कर अच्छा लगा। यह साल में एक बार ही बजता है- शिवरात्रि के दिन। यह मंदिर भगवान शिव का है। इसके बाद हम श्री सीताराम गुफा में गए। कृत्रिम गुफा में किसी तरह घुसने की जगह है। अंदर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जी की सुंदर मूर्ति है। गर्भ स्थान में ही भगवान शिव का सुंदर सा शिवलिंग है।
देश का सबसे बड़ा शनि मंदिर है- शनिशिंगणापुर में। इसे श्री शनैश्वर देवस्थान कहते हैं। यहां लगभग सात फुट का एक काला पत्थर रखा हुआ है। यहां तेल और एक विशेष पौधे का पत्ता चढ़ाया जाता है। भक्त तेल को एक बेसिननुमा जगह पर चढ़ा देते हैं। वहां से मोटर के जरिए यह तेल शनिदेव को चढ़ा दिया जाता है। शनिदेव तक जाने की इजाजत किसी को भी नहीं है। वहां ध्यान और शनिमहिमा के पाठ के लिए अलग अलग स्थान हैं। इसके अलावा चढ़ावे के लिए पेड़ों का पैकेट भी एक काउंटर पर मिलता है। वहां शनिदेव पर केंद्रित साहित्य के लिए बुकस्टाल है। वहीं शनिदेव का फोटो और सीडी आदि मिलती है। हम सबने वहां पर्यटक के तौर पर सारी चीजें देखीं। किसी ग्रह का इतना बड़ा मंदिर मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा। हम सब शनिदेव को प्रणाम कर आगे बढ़ गए। इसके पहले हम त्र्यंबकेश्वर और शिरडी के साईंबाबा का दर्शन कर चुके थे।

Monday, October 24, 2011

मैं देह नहीं, बुद्धि नहीं.......


विनय बिहारी सिंह



निश्चय ही मनुष्य शरीर नहीं है। वह मन, बुद्धि, अहं या चित्त भी नहीं है। सोचने की इसी प्रक्रिया को नेति- नेति कहते हैं। मैं शरीर नहीं हूं। मैं इंद्रियां नहीं हूं। मैं बुद्धि नहीं हूं। नेति- नेति। तो मैं क्या हूं? यानी मनुष्य क्या है? वह है शुद्ध आत्मा। ध्यान में इसी विचार को केंद्र में रख कर हम अपनी आत्मा को परमात्मा में मिला देते हैं। ध्यान की गहराई धीरे- धीरे आती है। एकदम से कोई चाहे कि गहरा ध्यान लग जाए तो यह संभव नहीं है। इसका पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अभ्यास करना होता है। ईश्वर की कृपा से मैंने पिछले दिनों एक आध्यात्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया और खूब आनंद मिला। इस दौरान द्वादस शिवलिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर का दर्शन किया। फिर संयोग जुटा तो शिरडी के साईंबाबा के दिव्य मंदिर में भी गया और सोने के सिंहासन पर सोने के मुकुट से सुशोभित साईंबाबा की सुंदर मूर्ति देखी। साईंबाबा के मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर उनका भोजनालय है। आप फ्री में वहां से कूपन लीजिए और बैठ कर शुद्ध सात्विक भोजन कीजिए। साईंबाबा के भोजनालय के बाहर साईंबाबा की एक विशाल मूर्ति है जो एक बड़े हंडे से भोजन निकाल रही है। यानी इस भोजनालय में आप साईंबाबा का दिया भोजन कर रहे हैं। हमें सबसे पहले जलेबी दी गई। फिर पूड़ी। इसके बाद चावल, दाल और दो किस्म की सब्जी। जब हम भोजन कर रहे थे तो शाम के साढ़े पांच बज रहे थे। लेकिन चूंकि हमने दिन में भोजन नहीं किया था इसलिए शाम का यह भोजन बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। भोजनालय में एक साथ ३००० (तीन हजार) लोग एक साथ भोजन कर सकते हैं। दोनों तरफ मेजें लगी हुई हैं और बीच में ट्राली में रखे व्यंजन लिए परोसने वाले सेवक आते हैं और आपको देते जाते हैं। शिरडी के साईंबाबा के दरबार में तृप्त होकर हमें फिर रात को भोजन करने की जरूरत नहीं महसूस हुई। रात को हम यूं ही फल फूल खा कर रह गए। त्र्यंबकेश्वर भगवान (भगवान शिव) का दर्शन अत्यंत सुखद था। मंदिर पुराना हो गया है। इसका जीर्णोद्धार अत्यंत आवश्यक है। नंदी वाला मंदिर की खिड़कियां टूट चुकी हैं। इस पर न तो पुरातत्व विभाग के लोग ध्यान दे रहे हैं और न ही मंदिर का प्रबंधन। एक अत्यंत बहुमूल्य धरोहर हमारे सामने जीर्ण- शीर्ण पड़ा हुआ है।
नासिक (महाराष्ट्र) के पास इगतपुरी नामक स्थान सुरम्य है। चारो तरफ से पहाड़ियों से घिरे योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया (संक्षेप में वाईएसएस) के इगतपुरी आश्रम में छह दिन तक आध्यात्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर सुख मिला। इस कार्यक्रम का नाम था- शरद संगम। इसमें परमहंस योगानंद जी के देश- विदेश के शिष्य एक जगह इकट्ठा होते हैं और विशेष रूप से आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रमों में सामूहिक रूप से हिस्सा लेते हैं। सभी एक साथ बैठ कर शांति और आनंद के साथ नाश्ता और भोजन करते हैं। कार्यक्रम यूं होता था- सुबह उठ कर शक्ति संचार व्यायाम और गहरा ध्यान। फिर आठ बजे जलपान। उसके बाद परमहंस योगानंद जी की शिक्षाओं को केंद्र में रख कर किसी आध्यात्मिक विषय पर अत्यंत ग्यानवर्द्धक प्रवचन। दिन के १२ बजे भोजन। फिर किसी विषय पर गहरी जानकारी देने वाला प्रवचन। शाम को चार बजे चाय। इसके बाद शक्ति संचार व्यायाम और गहरा ध्यान। रात के आठ बजे भोजन। फिर या तो भजन या वीडियो फिल्म जो आध्यात्मिक भूख को एक हद तक मिटाती है। इसी दौरान १७ अक्तूबर को क्रिया दीक्षा का कार्यक्रम था। स्वामी कृष्णानंद जी के माध्यम से अनेक लोगों को दीक्षा मिली।
शरद संगम में स्वामी कृष्णानंद, स्वामी ओंकारानंद और ब्रह्मचारी सदानंद जी के साथ बिताए सुखद दिन कभी नहीं भूलेंगे।

Tuesday, October 11, 2011

भगवान विष्णु के दस अवतार

विनय बिहारी सिंह



भगवान विष्णु ने दस रूपों में अवतार लिया था। इनमें से भगवान राम और कृष्ण के बारे में तो सभी जानते हैं। उनके दसों अवतारों के नाम इस प्रकार हैं- १-मत्स्य, २- कूर्म, ३- वराह, ४- वामन, ५- नृसिंह, ६- परशुराम, ७-राम,८-बुद्ध ९- कृष्ण, १०- कल्की। हर कथा अत्यंत रोचक है। आइए आज मत्स्य अवतार के बारे में चर्चा करें।
कथा है- एक बार द्रविड़ वंश के राजा सत्यव्रत जिन्हें बाद में मनु की पदवी मिली, नदी में स्नान कर रहे थे। अचानक उनकी अंजुरी में एक छोटी सी मछली आ गई। सत्यव्रत उसे फिर जल में रखने ही वाले थे कि मछली ने उनसे प्रार्थना की कि वे उसके जीवन की रक्षा करें और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर ले चलें। सत्यव्रत या मनु ने मछली को एक कमंडलु में रख दिया और स्ना कर घर पहुंचे। घर पहुंच कर उन्होंने देखा कि मछली कमंडलु से बड़ी हो गई है। तब मछली ने आग्रह किया कि उसे किसी तालाब में रख दिया जाए। राजा ने उसे तालाब में रखवा दिया। लेकिन आश्चर्य, वह मछली तालाब से भी बड़ी हो गई। तब मछली ने आग्रह किया कि उसे नदी में रख दिया जाए। जब उसे नदी में रखा गया तो वह नदी से भी बड़ी हो गई। तब मछली ने आग्रह किया कि उसे समुद्र में रख दिया जाए। लेकिन आश्चर्य- जब उसे समुद्र में रखा गया तो वह समुद्र से भी बड़ी हो गई। तब मनु को समझ में आ गया कि यह मछली कोई सामान्य जीव नहीं है। उन्होंने आदर के साथ उसे प्रणाम किया और पूछा कि वे कौन हैं। तब भगवान विष्णु ने उन्हें अपना असली रूप दिखाया। मनु या सत्यव्रत ने पूछा कि इस अवतार का कारण क्या है भगवन। मछली रूप में भगवान ने कहा- आज से सात दिनों बाद प्रलय आएगा। तुम महत्वपूर्ण वनस्पतियों के बीज, औषधियां आदि इकट्ठा कर रखो। इस प्रलय में तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा। तुम इसी समुद्र के किनारे आ जाना। तुम्हें एक नाव मिलेगी। उस पर सप्तऋषि बैठे होंगे। उन्हीं के साथ तुम भी अपने साथ लाए बीजों और औषधियों के साथ उस नाव पर बैठ जाना। तुम्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाएगा। ठीक सात दिनों बाद प्रलय आया। सत्यव्रत या मनु भगवान द्वारा निर्देशित सामान के साथ समुद्र के किनारे खड़े हो गए। जहां वे खड़े हुए वहीं एक बड़ी सी नाव प्रकट हुई। उस पर सप्तऋषि बैठे हुए थे। सत्यव्रत अपने सामान के साथ उस पर बैठ गए और भगवान के लोक को चले गए। यह है मत्स्य अवतार की संक्षिप्त कथा।

(मित्रों, मैं कल यानी १२ अक्तूबर से २३ अक्तूबर तक योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के महाराष्ट्र स्थित इगतपुरी में हो रहे शरद संगम में हिस्सा लेने जा रहा हूं। इस आनंददायी आयोजन से लौट कर आप से २४ अक्तूबर को भेंट होगी। तब तक आप पुराने पोस्ट पढ़ कर आनंद उठाएं।)

Monday, October 10, 2011

भगवान कोई वस्तु नहीं कि कोई उन्हें दिखा दे

विनय बिहारी सिंह



एक साधु से किसी तर्कवादी ने पूछा- यदि भगवान हैं तो दिखते क्यों नहीं? साधु ने कहा- भगवान कोई वस्तु नहीं हैं कि कोई दिखा दे। वे तो सर्वव्यापी, सर्वग्याता और सर्वशक्तिमान हैं। उन्हीं से सारी चीजें बनीं हैं और उन्हीं में सारी चीजों का लय हो जाता है। जन्म भी उन्हीं में और मृत्यु भी उन्हीं में। हम जीवित भी उन्हीं में हैं। हम सांस भी उन्हीं की कृपा से लेते हैं। हमारी सांस तय है। उससे ज्यादा सांस हम नहीं ले सकते। यह तय करने वाले भगवान ही हैं। और कोई नहीं। ये दिन- रात, सूर्य- चंद्रमा, चांद- तारे, प्रकृति की सुंदरता और अनंत कोटि ब्रह्मांड उन्हीं के कारण नियम से चल रहे हैं। २४ घंटे के दिन और रात को उन्होंने ही बनाया है। फिर भी आप पूछ रहे हैं कि भगवान कहां हैं? तब तर्कवादी ने पूछा- अगर भगवान हैं तो दुनिया में इतना दुख, इतनी पीड़ा क्यों है? साधु ने उत्तर दिया- हमने जो कर्म किया है उसी का फल भोग रहे हैं। भगवान ने हमें स्वतंत्र इच्छा शक्ति दी है। अगर हम उस इच्छा शक्ति का दुरुपयोग करेंगे तो फल भोगेंगे ही। इसमें भगवान का तो कोई दोष नहीं है। उन्होंने आपको हवा दी, पानी दिया, सूर्य का प्रकाश दिया, फल- फूल दिए, अनाज दिया। लेकिन फिर भी आप उनके आभारी नहीं हैं। उल्टे आप उनके अस्तित्व पर ही शक कर रहे हैं। तब तर्कवादी ने पूछा- आखिर कोई तो भगवान के संपर्क में होगा? साधु ने कहा- हां, इस दुनिया में अनेक संत हैं जो भगवान के संपर्क में हैं। उनका मन पूर्ण रूप से भगवान में स्थिर है। उनकी आंखें बंद हों या खुली निरंतर भगवान के दर्शन करती रहती हैं। यदि आप भी घंटों स्थिर बैठ कर भगवान का गहरा ध्यान करें तो उनकी दिव्य अनुभूति होगी। लेकिन किसी में इतना धैर्य नहीं है। अनेक लोग समझते हैं कि किताबें पढ़ने या तर्क करने से ही भगवान मिल जाएंगे। हर चीज का एक नियम होता है। भगवान को अनुभव करने के नियमों का पालन कीजिए। सत्य, अहिंसा, आस्तेय, ब्रह्मचर्य, शुचिता, तप, संतोष, स्वाध्याय और ईश्वर में पूर्ण समर्पण के बाद धारणा, ध्यान और समाधि की स्थिति प्राप्त होती है। सिर्फ तर्क करने से भगवान का अनुभव नहीं होगा।

Friday, October 7, 2011

कब्ज दूर करने के प्राकृतिक उपाय

विनय बिहारी सिंह



आज कब्ज के बारे में एक जानकार से ढेर सारी बातें हुईं। इसे मैं आपको भी बताना चाहता हूं। कब्ज के विशेषग्य डाक्टर ने कहा- अगर अधिक मात्रा में कब्ज तोड़ने वाली दवाएं ली जाएंगी तो भी कब्ज हो जाता है। कैसे? आपने कब्ज खत्म करने वाली दवा जरूरत से ज्यादा मात्रा में ली। आपका पेट साफ हो गया। लेकिन जैसे ही आपने दवा छोड़ी कब्ज ने अपना मजबूत आसन जमा लिया। इसलिए कभी भी दवाओं पर आश्रित नहीं रहना चाहिए। अगर आपको कब्ज है तो हफ्ते में या पंद्रह दिन पर इसबगोल की भूसी जरूर ले लेनी चाहिए। यह प्राकृतिक उपाय है। दिन भर में तीन बार एक- एक चम्मच इसबगोल की भूसी अच्छी है। लेकिन अगर आप दो चम्मच भी लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है। दिन भर में तीन से चार लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए।
आलूबुखारा कब्ज वाले रोगी को बहुत फायदा करता है। कोलकाता में आलूबुखारा खूब मिलता है। लेकिन चूंकि यह थोड़ा सा खट्टा होता है, इसलिए इसके साथ थोड़ा सा खजूर (सूखा फल) मिला कर खा सकते हैं। कई लोग आलूबुखारा पुलाव वगैरह में भी डाल कर खाते हैं। दिन में सेब का रस पीना कब्ज को मार डालने जैसा बताया गया है। पपीता कब्ज खत्म करने वाला लोकप्रिय फल है। यह पेट तो साफ करता ही है, स्वास्थ्यवर्द्धक भी है। पपीते के साथ अगर अंजीर का सेवन भी किया जाए तो यह फायदा कई गुना हो जाता है। पालक भी कब्ज तोड़ने की अचूक दवा है लेकिन पालक मुझे सूट नहीं करती। हालांकि इसमें तमाम विटामिन और मिनरल्स होते हैं। डाक्टर पालक का रस पीने की सलाह देते हैं लेकिन वह भी मुझे सूट नहीं करता। संतरे का रस निसंदेह कब्ज में बहुत फायदेमंद है और यह सबको सूट करता है। सुबह नाश्ते में एक या दो संतरे और रात को सोने से पहले एक या दो संतरे लेना बहुत फायदेमंद है। अमरूद और अमरूद का रस भी बहुत फायदा करता है। गाजर, टमाटर आदि का सेवन तो अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा नमक मिला नींबू का पानी खूब फायदेमंद है। पानी गुनगुना होना चाहिए। अमरूद के अलावा अंगूर, भृंगराज का रस आदि अचूक प्राकृतिक दवाएं हैं। डाक्टर ने कहा- इन सारी चीजों के सेवन के अलावा हफ्ते में एक दिन सिर्फ संतरे या मोसम्मी के रस पर उपवास रखना सोने में सुगंध जैसा है। हरी सब्जियां भी फाइबर युक्त होती हैं और कब्ज खत्म करने में मदद करती हैं, बशर्ते उन्हें खूब तेल या घी में भूना न गया हो। उबली सब्जियां इसीलिए अमृत जैसी होती हैं। हल्का तेल डालना नुकसानदेह नहीं होता। अंतिम चीज जो बहुत आवश्यक है, वह है- व्यायाम। खासतौर से पेट वाले व्यायाम।
डाक्टर से जो मैंने सुना आप तक पहुंचा कर अच्छा लग रहा है।

Wednesday, October 5, 2011

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः

विनय बिहारी सिंह






मेरे आवास के पास एक शिव मंदिर और कालीमंदिर है। वहां आज सुबह से देवी पाठ का सीडी बज रहा है- या देवी सर्व भूतेषु, मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।..... सुबह से लेकर आफिस आने तक माता का पाठ सुनना अच्छा लग रहा था। मां दुर्गा मातृ रूप में, शक्ति रूप में, ग्यान रूप में या अन्य रूपों में हमारे जीवन का केंद्र हैं। यदि आप अपने बच्चे को मेधावी बनाना चाहते हैं तो मां सरस्वती, यदि धनवान बनाना चाहते हैं तो मां लक्ष्मी, यदि प्रेम का पात्र और शक्तिवान बनना चाहते हैं तो मां दुर्गा, यदि गहन साधना में जाना चाहते हैं तो मां काली की अराधना अच्छी है। तब आप पूछ सकते हैं कि मां के ये विभिन्न रूप क्यों? दरअसल मां के ही ये अलग अलग रूप हैं। मां तो एक ही हैं। बस उनकी लीलाओं के आधार पर अलग- अलग रूप बना दिए गए हैं। मां काली को तो काल की देवी कहा जाता है। उनके भक्तों से काल दूर भागता है। इसी तरह मां दुर्गा के भक्तों से भी काल दूर भागता है। मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी अपने भक्तों को अनोखे ढंग से बचाती हैं। इस पर एक भक्त ने कहा- क्यों कनफ्यूजन पैदा कर रहे हैं। किसी एक देवी के पूजा करने से ही सारा काम हो जाता है। तब वहां खड़े एक साधु ने कहा- नहीं। यह कनफ्यूजन नहीं है। भगवान एक हैं उनके रूप अलग अलग हैं। जैसे चीनी तो एक ही है। लेकिन मिठाइयां अलग- अलग हैं। ऐसे भक्तों की कमी नहीं है जो भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा करना चाहते हैं। दरअसल भक्त भगवान या जगन्माता के अलग अलग रूपों में भक्ति कर आनंदित होता है। लेकिन अगर आपको कनफ्यूजन होता है तो किसी एक देवी पर टिके रहिए और मानिए कि बाकी सारे रूप उन्हीं के हैं। इस तरह आपको कनफ्यूजन भी नहीं होगा और सारा संसार आपको अपने इष्ट से आच्छादित लगेगा। बस मन किसी एक रूप पर केंद्रित हो जाए। वही रूप बाद में आपको निराकार भगवान की ओर ले जाएगा। अंत में सारे रूप फिर एक में मिल जाते हैं। आखिर ईश्वर तो एक ही हैं।

Tuesday, October 4, 2011

दुर्गा यानी प्रेम और सुरक्षा का दुर्ग

विनय बिहारी सिंह



दुर्गा यानी ऐसी जगन्माता जो हमें प्रेम और सुरक्षा के दुर्ग में रखती हैं। जगन्माता के दुर्ग में जो रहता है उसका बाल बांका नहीं होता। तो कौन रहता है मां के दुर्ग में? जो उनका भक्त हो। रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य कहा करते थे- दुर्गा दुर्गा नाम जपूं तो डर किस बात का? वे भवभय हारिणी हैं। उनका एक नाम दुर्गतिनाशिनी है। मां दुर्गा के दस हाथ हैं। उनमें विभिन्न अस्त्र- शस्त्र हैं। लेकिन एक हाथ आशीर्वाद देता हुआ है, अपने भक्तों को अभय दान देता हुआ। वे अपने भक्तों को दुर्गति से बचाती हैं। यानी उनके भक्त पर कोई संकट आने वाला होगा तो वे संकट को ही नष्ट कर देती हैं। वे भक्तों को विपत्तियों से बचा लेती हैं। कौन मां होगी जो अपने बच्चे को कष्ट में देखना चाहेगी? यही बात मां दुर्गा के साथ है। कई महीने पहले मैं मां दुर्गा के एक भक्त से मिला था। उनकी आंखों में माता के प्रति भक्ति स्पष्ट नजर आ रही थी। उन्हें कुछ खाने को मिलता था तो वे कहते थे- मां आज तुम यह दे रही हो। ठीक है, तब यही खाने में मेरी भलाई है। खाने से पहले वे मां दुर्गा को भोजन चढ़ाते थे। आंखें बंद कर उसे मन ही मन अर्पित करते थे और तब कहते थे- मेरे भीतर जो दुर्गा मां हैं, उन्हीं को यह भोजन समर्पित है। मां दुर्गा के ऐसे भक्त दुर्लभ हैं। वे यह मानते हैं कि जीवन में जो कुछ भी हो रहा है सब मां दुर्गा की कृपा से हो रहा है और इसका कोई न कोई उद्देश्य है। वे कहते हैं- अगर मुझे किसी ने मिठाई खाने को दी तो यह बिना मां की इच्छा के संभव नहीं है। अगर किसी ने मुझे कोई सुविधा दी तो वह भी मां की कृपा से हुआ। इस तरह वे मां दुर्गा के दुर्ग में रहते हैं। वे कहते हैं- मेरी जगन्मता भवभयहारिणी हैं। फिर मैं क्यों डरूं? मेरे जीवन में सब ठीक हो जाएगा।

Monday, October 3, 2011

दुर्गोत्सव

विनय बिहारी सिंह



इन दिनों कोलकाता में दुर्गोत्सव चल रहा है। शाम को सड़कों और पंडालों में तो भारी भीड़ रहती ही है, ट्रेनों और बसों में भी खूब भीड़ होती है। युवा स्त्री- पुरुष और बच्चे अत्याधुनिक वस्त्रों में उत्साह और उत्सुकता से घूम- फिर रहे हैं। विभिन्न ढाबों में खा- पी रहे हैं। कोलकाता में दुर्गोत्सव पांच दिन चलता है। इस तरह पांच दिनों तक यही दृश्य रहेगा। पंडालों के पास सड़कों के किनारे दूर तक खाने- पीने के स्टाल लगे रहते हैं। घूमने वाले आते हैं और चाऊमिन, रोल, चाट, पैस्ट्री, पैटीज, पिजा, छोले- बठूरे, कचौरी- मीठी दाल और अन्य तरह के व्यंजन खूब चाव से खाते हैं और घूमने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। इन घूमने वालों के घर रात का खाना नहीं बनता। वे घूमते हुए जब भूख लगती है तो कहीं किसी स्टाल पर रुकते हैं और अपनी मनपसंद की चीज खा- पी लेते हैं। पूरी रात वे घूम सकते हैं। कोई डर नहीं, कोई भय नहीं। मेट्रो ट्रेन आज के दिन यानी सप्तमी से तीन- चार दिनों के लिए दिन के दो बजे से शुरू हो कर रात भर चलती है। बाकी दिन सुबह साढ़े छह से मेट्रो ट्रेन शुरू होती है और रात के दस बजे के आसपास बंद हो जाती है। लेकिन सप्तमी को मेट्रो दिन के दो बजे शुरू होती है क्योंकि उसे रात भर चलना होता है। यहां के कुछ पंडालों को देख कर कोई भी अवाक हो सकता है। इतने खूबसूरत और कलात्मक पंडाल कि जिसका शब्दों में वर्णन मुश्किल है। इन्हीं में से एक अहिरीटोला दुर्गापूजा पंडाल है। यह पंडाल शीतला मंदिर के ठीक बगल में बनता है। पहले मेरा दफ्तर वहां हुआ करता था तो बिना कोशिश के ही वहां का अद्भुत पंडाल मैं देख लिया करता था। लेकिन अब दफ्तर वहां से दूर आ गया है।
लेकिन एक बात मुझे लगातार हांट करती है। जो लोग दुर्गोत्सव मनाते हैं क्या वे कभी एकांत में बैठ कर मां दुर्गा की हृदय से पूजा करते हैं? इनमें से कुछ लोग तो जरूरत करते होंगे। मां दुर्गा को करुणामयी कहा जाता है। वे करुणा की अनंत सागर हैं। उनके पास जो अपना दिल उड़ेल देता है, वह मां का अनंत प्यार पाता रहता है।

Saturday, October 1, 2011

what happens after death?

Vinay Bihari Singh






Great saints has said- after death, we enter in to astral world. then we freed from body problems. Paramhansa Yogananda ji (Founder of Yogoda satsanga society of India/self realization fellowship) has written in Aoutobiography of a Yogi that there are many levels in astral world just like here on earth. But those who are lover of God, are always happy in the astral world. your astral body is made of light and consciousness. so you can move where ever you want. But for bad souls (who are evil doers) there is no joy there. those who committed suicide, are worst souls. the can not get body for long years. they feel trouble every where. That's why saints say- Never commit suicide. Otherwise you will get more trouble when you will be dead.
That's why we should be more loving towards human beings, more tolerant toward those who are less previlaged. Paramhansa Yogananda has said- God is always loving you unconditionly. But He is not dictator. that's why He has given you free will. So love God mement by moment.